Lekhika Ranchi

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रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद


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चपरासी के चले जाने के बाद मिसेज़ सेवक ने कहा-सोफी के लिए यह स्वर्ण-संयोग है।
जॉन सेवक-हाँ, है तो; पर वह आएगी कैसे?
मिसेज़ सेवक-उसके पास यह पत्र भेज दूँ?
जॉन सेवक-सोफी इसे खोलकर देखेगी भी नहीं। उसे जाकर लिवा क्यों न हीं लातीं?
मिसेज़ सेवक-वह तो आती ही नहीं।
जॉन सेवक-तुमने कभी बुलाया ही नहीं, आती क्योंकर?
मिसेज़ सेवक-वह आने के लिए कैसी शर्त लगाती है!
जॉन सेवक-अगर उसकी भलाई चाहती हो, तो अपनी शर्तों को तोड़ दो।
मिसेज़ सेवक-वह गिरजा न जाए, तो भी जबान न खोलूँ?
जॉन सेवक-हजारों ईसाई कभी गिरजा नहीं जाते, और अंगरेज तो बहुत कम आते हैं।
मिसेज़ सेवक-प्रभु मसीह की निंदा करे, तो भी चुप रहूँ?
जॉन सेवक-वह मसीह की निंदा नहीं करती, और न कर सकती है। जिसे ईश्वर ने जरा भी बुध्दि दी है, वह प्रभु मसीह का सच्चे दिल से सम्मान करेगा। हिंदू तक ईसू का नाम आदर के साथ लेते हैं। अगर सोफी मसीह को अपना मुक्तिदाता, ईश्वर का बेटा या ईश्वर नहीं समझती,तो उस पर जब्र क्यों किया जाए? कितने ही ईसाइयों को इस विषय में शंकाएँ हैं चाहे वे उन्हें भयवश प्रकट न करें। मेरे विचार में अगर कोई प्राणी अच्छे कर्म करता है और शुध्द विचार रखता है, तो वह उस मसीह के उस भक्त से कहीं श्रेष्ठ है, जो मसीह का नाम तो जपता है, पर नीयत का खराब है।
ईश्वर सेवक-या खुदा, इस खानदान पर अपना साया फैला। बेटा, ऐसी बातें जबान से न निकालो। मसीह का दास कभी सन्मार्ग से नहीं फिर सकता। उस पर प्रभु मसीह की दयादृष्टि रहती है।
जॉन सेवक-(स्त्री से) तुम कल सुबह चली जाओ, रानी से भेंट भी हो जाएगी और सोफी को भी लेती आओगी।
मिसेज़ सेवक-अब जाना ही पड़ेगा। जी तो न हीं चाहता; पर जाऊँगी। उसी की टेक रहे!
सूरदास संध्‍या समय घर आया, और सब समाचार सुने, तो नायकराम से बोला-तुमने मेरी जमीन साहब को दे दी?
नायकराम-मैंने क्यों दी? मुझसे वास्ता?
सूरदास-मैं तो तुम्हीं को सब कुछ समझता था और तुम्हारे ही बल पर कूदता था, पर आज तुमने भी साथ छोड़ दिया। अच्छी बात है। मेरी भूल थी कि तुम्हारे बल पर फूला हुआ था। यह उसी की सजा है। अब न्याय के बल पर लड़ूँगा, भगवान ही का भरोसा करूँगा।
नायकराम-बजरंगी, जरा भैरों को बुला लो, इन्हें सब बातें समझा दें। मैं इनसे कहाँ तक मगज लगाऊँ।
बजरंगी-भैरों को क्यों बुला लँ, क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता। भैरों को इतना सिर चढ़ा दिया, इसी से तो उसे घमंड हो गया है।
यह कहकर बजरंगी ने जॉन सेवक की सारी आयोजनाएँ कुछ बढ़ा-घटाकर बयान कर दीं और बोला बताओ, जब कारखाने से सबका फायदा है, तो हम साहब से क्यों लड़ें?
सूरदास-तुम्हें विश्वास हो गया कि सबका फायदा होगा?
बजरंगी-हाँ, हो गया। मानने-लायक बात होती है, तो मानी ही जाती है।
सूरदास-कल तो तुम लोग जमीन के पीछे जान देने पर तैयार थे, मुझ पर संदेह कर रहे थे कि मैंने साहब से मेल कर लिया, आज साहब के एक ही चकमे में पानी हो गए?
बजरंगी-अब तक किसी ने ये सब बातें इतनी सफाई से न समझाई थीं। कारखाने से सारे मुहल्ले का, सारे शहर का फायदा है। मजूरों की मजूरी बढ़ेगी, दूकानदारों की बिक्री बढ़ेगी। तो अब हमें तो झगड़ा नहीं है। तुमको भी हम यही सलाह देते हैं कि अच्छे दाम मिल रहे हैं, जमीन दे डालो। यों न दोगे, तो जाबते से ले ली जाएगी। इससे क्या फायदा?
सूरदास-अधर्म और अविचार कितना बढ़ जाएगा, यह भी मालूम है?
बजरंगी-धन से तो अधर्म होता ही है, पर धन को कोई छोड़ नहीं देता।
सूरदास-तो अब तुम लोग मेरा साथ न दोगे? मत दो। जिधर न्याय है, उधर किसी की मदद की इतनी जरूरत भी नहीं है। मेरी चीज है,बाप-दादों की कमाई है, किसी दूसरे का उस पर कोई अखतियार नहीं है। अगर जमीन गई, तो उसके साथ मेरी जान भी जाएगी।
यह कहकर सूरदास उठ खड़ा हुआ और अपने झोंपड़े के द्वार पर आकर नीम के नीचे लेट रहा।

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